उजली चादर पहने नीरद
शोभित किए अम्बर को
याद नहीं कब देखा था
आख़िर बार इस विस्मित पल को।
कीट,मूषक ,मानुष सभी
मूक बैठें है, भयाकुल
‘करोना’ के तिमिर में
स्तंभित और व्याकुल।।
अर्थ -अनर्थ, पीड़ निरन्तर
न कर पाया विज्ञान भी अंतर
कहाँ गया विश्व बंधुत्व
ख़तरे में सृष्टि समस्त।
नत मस्तक हुआ मानव
मानवता का ज्ञान हुआ
विश्व विशाल को भी
लघुशक्ति का भान हुआ।।
बंद आज मानव
आगर में, अहम् में
स्मरण रहे है समाधान
अहम् नहीं, बस “हम” में।
“नीति शिखा”
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