Friday, March 27, 2020


उजली चादर पहने नीरद
शोभित किए अम्बर को
याद नहीं कब देखा था
आख़िर बार इस विस्मित पल को। 

कीट,मूषक ,मानुष सभी 
मूक बैठें हैभयाकुल
करोना’ के तिमिर में
स्तंभित और व्याकुल।।

अर्थ -अनर्थपीड़ निरन्तर
 कर पाया विज्ञान भी अंतर
कहाँ गया विश्व बंधुत्व
ख़तरे में सृष्टि समस्त।

नत मस्तक हुआ मानव 
मानवता का ज्ञान हुआ
विश्व विशाल को भी
लघुशक्ति का भान हुआ।।

बंद आज मानव
आगर मेंअहम् में
स्मरण रहे है समाधान
अहम् नहींबस “हम” में।

                              “नीति शिखा

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